Hope Poetry (page 108)
माँ
बक़ा बलूच
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
बक़ा बलूच
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
बक़ा बलूच
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
बक़ा बलूच
कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा
बनो ताहिरा सईद
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
बलवान सिंह आज़र
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
बलवान सिंह आज़र
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
बलवान सिंह आज़र
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही
बलवान सिंह आज़र
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
बलवान सिंह आज़र
दो क़दम साथ क्या चला रस्ता
बलवान सिंह आज़र
बे-ख़ुदी साथ है मज़े में हूँ
बलवान सिंह आज़र
ये ज़र्द बच्चे
बलराज कोमल
तर्सील
बलराज कोमल
तहलील
बलराज कोमल
शायद
बलराज कोमल
सर-ए-राहगुज़र एक मंज़र
बलराज कोमल
सर्द, तारीक रात
बलराज कोमल
सबा के हाथ पीले हो गए
बलराज कोमल
नन्हा शहसवार
बलराज कोमल
मैं, एक और मैं
बलराज कोमल
गिर्या-ए-सगाँ
बलराज कोमल
एक पुर-असरार सदा
बलराज कोमल
दीवारें
बलराज कोमल
दीदा-ए-तर
बलराज कोमल
दिल के हाथों ख़राब हो जाना
बलराज हयात
चुटकियाँ लेती है गोयाई किसे आवाज़ दूँ
बलराज हयात
समुंदर है कोई आँखों में शायद
बकुल देव
हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ में
बकुल देव