Islamic Poetry (page 9)
हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है
हयात मदरासी
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
हयात लखनवी
रातों को बुत बग़ल में हैं क़ुरआँ तमाम दिन
हातिम अली मेहर
रात दिन सज्दे किया करता है हूरों के लिए
हातिम अली मेहर
न ले जा दैर से का'बा हमें ज़ाहिद कि हम वाँ भी
हातिम अली मेहर
क्या बुतों में है ख़ुदा जाने ब-क़ौल-ए-उस्ताद
हातिम अली मेहर
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
हातिम अली मेहर
ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके
हातिम अली मेहर
उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा
हातिम अली मेहर
उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम
हातिम अली मेहर
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
हातिम अली मेहर
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
हातिम अली मेहर
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए
हातिम अली मेहर
कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
हातिम अली मेहर
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
हातिम अली मेहर
का'बा-ओ-बुत-ख़ाना वालों से जुदा बैठे हैं हम
हातिम अली मेहर
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
हातिम अली मेहर
इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा
हातिम अली मेहर
हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम
हातिम अली मेहर
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
हातिम अली मेहर
ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ
हातिम अली मेहर
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
हातिम अली मेहर
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
हातिम अली मेहर
दरिया तूफ़ान बह रहा है
हातिम अली मेहर
बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
हातिम अली मेहर
बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
हातिम अली मेहर
बुतों का सामना है और मैं हूँ
हातिम अली मेहर
ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें
हातिम अली मेहर
ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का
हातिम अली मेहर
तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है
हस्सान अहमद आवान