Islamic Poetry (page 7)
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मैं अपने ख़्वाब से कट कर जियूँ तो मेरा ख़ुदा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शहर इल्म के दरवाज़े पर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दुआ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
अबू-तालिब के बेटे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
इफ़्तिख़ार आरिफ़
फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
इफ़्तिख़ार आरिफ़
रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं
इफ़्फ़त अब्बास
इस अँधेरे में जब कोई भी न था
इदरीस बाबर
यूँही आती नहीं हवा मुझ में
इदरीस बाबर
मैं उसे सोचता रहा या'नी
इदरीस बाबर
करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब
इदरीस बाबर
उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को
इबरत बहराईची
अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं
इब्राहीम अश्क
मैं वो नहीं कि ज़माने से बे-अमल जाऊँ
इब्राहीम होश
दैर-ओ-हरम में दश्त-ओ-बयाबान-ओ-बाग़ में
इब्राहीम होश
दिल में सज्दे किया करो 'मुफ़्ती'
इब्न-ए-मुफ़्ती
कर बुरा तो भला नहीं होता
इब्न-ए-मुफ़्ती
दिल वही अश्क-बार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
इब्न-ए-इंशा
झुलसी सी इक बस्ती में
इब्न-ए-इंशा
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो
इब्न-ए-इंशा
दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है
इब्न-ए-इंशा