Islamic Poetry (page 6)
ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद
इम्दाद आकाश
तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का
इमाम बख़्श नासिख़
सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ
इमाम बख़्श नासिख़
है मोहब्बत सब को उस के अबरू-ए-ख़मदार की
इमाम बख़्श नासिख़
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का
इमाम बख़्श नासिख़
आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे
इमाम बख़्श नासिख़
टिमटिमाता हुआ मंदिर का दिया हो जैसे
इमाम अाज़म
शत्तुल-अरब
इलियास बाबर आवान
मस्जिद-ए-अहमरीं
इलियास बाबर आवान
न-जाने कौन तिरे काख़-ओ-कू में आएगा
इलियास बाबर आवान
ऐ ख़ुदा भरम रखना बरक़रार इस घर का
इकराम मुजीब
नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर
इकराम आज़म
दिल है और ख़ुद नगरी ज़ौक़-ए-दुआ जिस को कहें
इज्तिबा रिज़वी
दिल से जब आह निकल जाएगी
इफ़्तिख़ार राग़िब
रात को बाहर अकेले घूमना अच्छा नहीं
इफ़्तिख़ार नसीम
न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना
इफ़्तिख़ार नसीम
मिशअल-ए-उम्मीद थामो रहनुमा जैसा भी है
इफ़्तिख़ार नसीम
अपनी मजबूरी बताता रहा रो कर मुझ को
इफ़्तिख़ार नसीम
ख़ुदा! सिला दे दुआ का, मोहब्बतों के ख़ुदा
इफ़्तिख़ार मुग़ल
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
इफ़्तिख़ार मुग़ल
तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी
इफ़्तिख़ार मुग़ल
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
इफ़्तिख़ार मुग़ल
कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
इफ़्तिख़ार मुग़ल
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
इफ़्तिख़ार मुग़ल
वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
बिखर ही जाऊँगा मैं भी हवा उदासी है
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
भर आईं आँखें किसी भूली याद से शाम के मंज़र में
इफ़्तिख़ार बुख़ारी
ये वक़्त किस की रऊनत पे ख़ाक डाल गया
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
पयम्बरों से ज़मीनें वफ़ा नहीं करतीं
इफ़्तिख़ार आरिफ़