उसे भी ज़िंदगी करनी पड़ेगी 'मीर' जैसी
सुख़न से गर कोई रिश्ता निभाना चाहता है
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वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है
फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है
बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का
जहाँ इक शख़्स भी मिलता नहीं है चाहने से
सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं
तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा
मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है
गुज़र जाएगी सारी रात इस में
वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए