सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
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ये कहना था जो दुनिया कह रही है
जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए
मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ
हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही
वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए
आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा
न हम से इश्क़ का मफ़्हूम पूछो
कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं
मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा
किसी भी राएगानी से बड़ा है