गुज़र जाएगी सारी रात इस में
मिरा क़िस्सा कहानी से बड़ा है
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हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है
वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा जिस ने
बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का
हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही
आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा
ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन
मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ
किसी भी राएगानी से बड़ा है
ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए
मिरे दिल के अकेले घर में 'राहत'
फ़साना अब कोई अंजाम पाना चाहता है