वो और थे कि जो ना-ख़ुश थे दो जहाँ ले कर
हमारे पास तो बस इक जहान था न रहा
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(807) Peoples Rate This
वो इश्क़ को किस तरह समझ पाएगा जिस ने
मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ
हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है
ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत
सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
वो मुझ को आज़माता ही रहा है ज़िंदगी भर
गुज़र जाएगी सारी रात इस में
तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा
जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए
कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन
कभी कभी तो जुदा बे-सबब भी होते हैं