छाया है बगूलों का फ़ुसूँ मंज़िल तक
मौजों से कहो ले के चलें साहिल तक
क्यूँ उलझी हुई डोर हुई जाती है
इक राह वो जाती है जो दिल से दिल तक
Javed Akhtar
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Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है
एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना
जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है
वो ताज है सर पर कि दबा जाता हूँ
वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा
सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रे
दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है
सहरा में भटकता हुआ इक दरिया हूँ
वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी
ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है
वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब
फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है