एहसास के हर रंग को अपना लेता
हँस लेता गा लेता ग़म खा लेता
इदराक लगाता है कचोके वर्ना
दिल को मैं खिलौनों से भी बहला लेता
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अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया
उस के सिवा क्या अपनी दौलत
वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था
ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं
एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना
रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले
नादीदा ख़लाओं से गुज़र आई है
रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़
वो ताज है सर पर कि दबा जाता हूँ
दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है
सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रे
ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है