Khawab Poetry of Idris Babar

Khawab Poetry of Idris Babar
नामइदरीस बाबर
अंग्रेज़ी नामIdris Babar
जन्म की तारीख1973
जन्म स्थानPakistan

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

वही ख़्वाब है वही बाग़ है वही वक़्त है

फूल है जो किताब में अस्ल है कि ख़्वाब है

मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त

यूँही आती नहीं हवा मुझ में

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए

सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

मैं उसे सोचता रहा या'नी

मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर

देखा नहीं चाँद ने पलट कर

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता

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