Heart Broken Poetry of Idris Babar

Heart Broken Poetry of Idris Babar
नामइदरीस बाबर
अंग्रेज़ी नामIdris Babar
जन्म की तारीख1973
जन्म स्थानPakistan

वही न हो कि ये सब लोग साँस लेने लगें

मैं जिन्हें याद हूँ अब तक यही कहते होंगे

कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो

ख़ुद-कुशी भी नहीं मिरे बस में

हाँ ऐ गुबार-ए-आश्ना मैं भी था हम-सफ़र तिरा

इक ख़ौफ़-ज़दा सा शख़्स घर तक

धूल उड़ती है तो याद आता है कुछ

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

मैं उसे सोचता रहा या'नी

मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर

देखा नहीं चाँद ने पलट कर

देख न इस तरह गुज़ार अर्सा-ए-चश्म से मुझे

और वहशत है इरादा मेरा

अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता

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