इंशा अल्लाह ख़ान कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इंशा अल्लाह ख़ान (page 2)

इंशा अल्लाह ख़ान कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का इंशा अल्लाह ख़ान (page 2)
नामइंशा अल्लाह ख़ान
अंग्रेज़ी नामInsha Allah Khan 'Insha'
जन्म की तारीख1753
मौत की तिथि1817
जन्म स्थानLucknow

चंद मुद्दत को फिराक़-ए-सनम-ओ-दैर तो है

बैठता है जब तुंदीला शैख़ आ कर बज़्म में

अजीब लुत्फ़ कुछ आपस के छेड़-छाड़ में है

ज़ुल्फ़ को था ख़याल बोसे का

ज़ोफ़ आता है दिल को थाम तो लो

ज़िन्हार हिम्मत अपने से हरगिज़ न हारिए

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

ये नहीं बर्क़ इक फ़रंगी है

ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

यास-ओ-उमीद-ओ-शादी-ओ-ग़म ने धूम उठाई सीने में

याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है

या वस्ल में रखिए मुझे या अपनी हवस में

वो परी ही नहीं कुछ हो के कड़ी मुझ से लड़ी

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

वो देखा ख़्वाब क़ासिर जिस से है अपनी ज़बाँ और हम

उस बंदा की चाह देखिएगा

तुम्हारे हाथों की उँगलियों की ये देखो पोरें ग़ुलाम तीसों

टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़

टुक इक ऐ नसीम सँभाल ले कि बहार मस्त-ए-शराब है

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह

तू ने लगाई अब की ये क्या आग ऐ बसंत

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम

तफ़ज़्जुलात नहीं लुत्फ़ की निगाह नहीं

तब से आशिक़ हैं हम ऐ तिफ़्ल-ए-परी-वश तेरे

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठों

साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है

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