क़ौस-ए-क़ुज़ह
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
दाल की फ़रियाद
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद