साल-हा-साल और इक लम्हा
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
शर्म दहशत झिझक परेशानी
सर में तकमील का था इक सौदा
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
चाँद की पिघली हुई चाँदी में