सर में तकमील का था इक सौदा
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
साल-हा-साल और इक लम्हा
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
पास रह कर जुदाई की तुझ से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
उस के और अपने दरमियान में अब
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए