मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
मिरी गुलफ़म जान-ए-दिल-रुबाई
मिरे जी में ये आता है कि मल दूँ
तिरे गालों पे नीली रौशनाई
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मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
उस के और अपने दरमियान में अब
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
पास रह कर जुदाई की तुझ से
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
शर्म दहशत झिझक परेशानी
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल