नींद उड़ जाएगी रातों को शिकायत होगी
मैं न समझा था तुम्हें इतनी मोहब्बत होगी
नज़रें ढूँडेंगी हर इक राह पे क़दमों के निशाँ
बाल बिखराए हुए मंज़िलों वहशत होगी
यही आशुफ़्ता-मिज़ाजी है तो ऐ जान-ए-वफ़ा
आज बस्ती में है कल शहर में शोहरत होगी
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मुझ को इन अर्ज़ी ख़ुदाओं ने अगर लूटा है
दिल-ए-वीराँ को अब की बार शायद
पा लिया फिर किसी उम्मीद ने फ़र्दा का सुराग़
शम्अ रौशन है सर-ए-बज़्म निगाहों में मगर
आहटों के सराब में गुम हैं
दिल से मजबूर आप से बेज़ार