दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
ख़ूब है ख़ाक से बुज़ुर्गों की
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे