बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
रोए जा और भी ऐ दीदा-ए-तर देखें तो
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रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया
तिरी तेग़ अबरू की टुक सामने कर देखें तो
इस की सूरत को देख कर भूले
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ