है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू इक दम में बिछड़ जाता है मुझ से
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ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
कहा किस ने कि तुम ये वो न बोलो
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
तुझ में जिस दम धियान जाता है
एक बर्छी से मार जाते हो