तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
पराई पच पे लड़ जाता है मुझ से
ये क्या कज-कावियाँ और टेढ़ियाँ हैं
कि तप तप को झगड़ जाता है मुझ से
हमेशा माश का आटा सा क्यूँ तू
ज़री भर में अकड़ जाता है मुझ से
बुरा है इश्क़ का आज़ार यारो
ये अक्सर वक़्त अड़ जाता है मुझ से
तबाबत में मसीहा हूँ व-लेकिन
मरज़ ये तो चपड़ जाता है मुझ से
है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू इक दम में बिछड़ जाता है मुझ से
है दुश्मन मन-चला पर 'अज़फ़री' देख
नज़र पड़ते संकड़ जाता है मुझ से
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