ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
नहीं कुछ मानते याँ को न वाँ को
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इस की सूरत को देख कर भूले
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
तिरी तेग़ अबरू की टुक सामने कर देखें तो
ग़ैरों के साथ गाते जाते हो
सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल