ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
बख़्त का माजरा लिखता हूँ सियाही देना
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(583) Peoples Rate This
सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
वो उठा कर यक क़दम आया न गाह
इस की सूरत को देख कर भूले
सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
ज़िंदगी चुभ रही है काँटा सी
हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की
'अज़फ़री' ग़ुंचा-ए-दिल बंद और आई है बहार
गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर