किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
इस मोहब्बत का हो मुँह काला मियाँ
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(600) Peoples Rate This
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया
सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
सोज़-ए-शम्-ए-हिज्र से शब जल गए
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
देख अपने माइलों को कि हैं दिल जले पड़े
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
एक बर्छी से मार जाते हो
दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले
किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर