हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे
Javed Akhtar
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Faiz Ahmad Faiz
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दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
एक बर्छी से मार जाते हो
तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया
जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो
सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले
ग़ैरों के साथ गाते जाते हो