हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
देख अब ये दीदा ख़ूँ न हो ख़ून-ए-जिगर पानी न कर
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जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
नम-ए-अश्क आँखों से ढलने लगा है
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं
भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े
तिरी तेग़ अबरू की टुक सामने कर देखें तो
धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह