जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
करो जो चाहो हम किस बात से इकराह रखते हैं
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जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह