धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
मर भी जाऊँ तो कफ़न देख के काही देना
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गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर
वो उठा कर यक क़दम आया न गाह
ज़िंदगी चुभ रही है काँटा सी
भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
देख अपने माइलों को कि हैं दिल जले पड़े
ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
कहा किस ने कि तुम ये वो न बोलो
ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई
जी में क्या क्या मिरी उमाहा था
जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं
हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे