कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
दिल झपट आँख लड़ा नज़रों से डट कर मारा
Javed Akhtar
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Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
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धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं
जी में क्या क्या मिरी उमाहा था
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
सोज़-ए-शम्-ए-हिज्र से शब जल गए
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर