क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
जो हम बिन पियो तो हमारा लहू है
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ग़ैरों के साथ गाते जाते हो
देख अपने माइलों को कि हैं दिल जले पड़े
ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई
तुझ में जिस दम धियान जाता है
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
हम फ़रामोश की फ़रामोशी
कहा किस ने कि तुम ये वो न बोलो
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद