हम फ़रामोश की फ़रामोशी
और तुम याद उम्र भर भूले
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आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की
जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
तुझ बिन और हम को सूझता ही नहीं
ढोलकी धम-धमी ख़ंजरी भी बजानी जानी
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े