ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
उस का नक़्शा धियान में कुछ है
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दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
तुझ में जिस दम धियान जाता है
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर
सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका
ढोलकी धम-धमी ख़ंजरी भी बजानी जानी
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की