बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
जिस को दुनिया से इलाक़ा नहीं ग़मनाक नहीं
Wasi Shah
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Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका
दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद