हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
कब वो सुनता है कहानी मेरी
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो