है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
कब वो सुनता है कहानी मेरी
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिखा था सो भी मिट गया
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा