सदा-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना मुझे नहीं आती
मिरे सवाल का शीशे में कुछ जवाब नहीं
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अज़ाँ दे के नाक़ूस को फूँक कर
हमेशा सैर-ए-गुल-ओ-लाला-ज़ार बाक़ी है
याद है रोज़-ए-अज़ल उस ने कहा क्या क्या कुछ
ख़ुद रहम कीजिए दिल-ए-उम्मीद-वार पर
हो जाती है हवा क़फ़स-ए-तन से छट के रूह
क़ातिल-ए-आलम से क्या याराना है
करते हैं चैन बैठे हुस्न-ओ-जमाल वाले
बोसा जो माँगा बज़्म में फ़रमाया यार ने
जान दी उन पे मर-मिटे सिसके
तोहमत-ए-जुर्म-ओ-ख़ता हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल
नफ़्स-ए-सग-ए-पलीद को गर अपने मारिए
हुस्न की दिल में मिरे जल्वागरी रहती है