सिखला रहा हूँ दिल को मोहब्बत के रंग-ढंग
करता हूँ मैं मकान की ता'मीर आज-कल
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(660) Peoples Rate This
जिधर को मिरी चश्म-ए-तर जाएगी
बाल खोले नहीं फिरता है अगर वो सफ़्फ़ाक
पीरी हुई शबाब से उतरा झटक गया
न बंद कर इसे फ़स्ल-ए-बहार में साक़ी
आप आए थे याँ जफ़ा के लिए
ख़याल उस सफ़-ए-मिज़्गाँ का दिल में आएगा
तेरे बाज़ार-ए-दहर में गर्दूं
बोसा जो माँगा बज़्म में फ़रमाया यार ने
जला कर ज़ाहिदों को मय-कशों को शाद करते हैं
दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा
जवानी की हालत गुज़र जाएगी
दुनिया में यही चोर बनाता है असस को