न बंद कर इसे फ़स्ल-ए-बहार में साक़ी
न डाल दुख़्तर-ए-रज़ का अचार शीशे में
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अज़ाँ दे के नाक़ूस को फूँक कर
क़ातिल-ए-आलम से क्या याराना है
जौर-ए-अफ़्लाक बस-कि झेले हैं
जवानी की हालत गुज़र जाएगी
मीठी है ऐसी बात उस की
जला कर ज़ाहिदों को मय-कशों को शाद करते हैं
तारिक-ए-दुनिया है जब से 'मुंतही'
आप आए थे याँ जफ़ा के लिए
तुफ़ैल-ए-रूह मिरा जिस्म-ए-ज़ार बाक़ी है
असीर कर के हमें हुक्म दे गया सय्याद
फाड़ ही डालूँगा मैं इक दिन नक़ाब-ए-रू-ए-यार
बा'द मरने के ठिकाने लग गई मिट्टी मिरी