असीर कर के हमें हुक्म दे गया सय्याद
क़फ़स हो तंग तो उन के न बाल-ओ-पर रखना
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उस बुत को छोड़ कर हरम-ओ-दैर पर मिटे
बाल खोले नहीं फिरता है अगर वो सफ़्फ़ाक
कभी हरम में कभी बुत-कदे को जाता हूँ
सिखला रहा हूँ दिल को मोहब्बत के रंग-ढंग
पीरी हुई शबाब से उतरा झटक गया
नफ़्स-ए-सग-ए-पलीद को गर अपने मारिए
सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
जवानी की हालत गुज़र जाएगी
दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा
आया पयाम-ए-वस्ल यकायक जो यार का
आप आए थे याँ जफ़ा के लिए
फ़ुग़ान-ओ-आह से पैदा किया दर्द-ए-जुदाई को