तारिक-ए-दुनिया है जब से 'मुंतही'
मिस्ल-ए-बेवा मादर-ए-अय्याम है
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ख़याल उस सफ़-ए-मिज़्गाँ का दिल में आएगा
कभी हरम में कभी बुत-कदे को जाता हूँ
सिखला रहा हूँ दिल को मोहब्बत के रंग-ढंग
मीठी है ऐसी बात उस की
मुझ सा आशिक़ आप सा माशूक़ तब होवे नसीब
आया पयाम-ए-वस्ल यकायक जो यार का
तोहमत-ए-जुर्म-ओ-ख़ता हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल
बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
होते होते न हुआ मिसरा-ए-रंगीं मौज़ूँ
मुमकिन मुझे जो हो बे-रिया हो
ये जिस ने जान दी है नान देगा
ख़ुद रहम कीजिए दिल-ए-उम्मीद-वार पर