होते होते न हुआ मिसरा-ए-रंगीं मौज़ूँ
बंद क्यूँ हो गया ख़ून-ए-जिगर आते आते
Jaun Eliya
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सर-सर गेसू हिला रही है
है ख़ुशी अपनी वही जो कुछ ख़ुशी है आप की
यूँ इंतिज़ार-ए-यार में हम उम्र भर रहे
जान दी उन पे मर-मिटे सिसके
बोसा जो माँगा बज़्म में फ़रमाया यार ने
हमेशा सैर-ए-गुल-ओ-लाला-ज़ार बाक़ी है
है दौलत-ए-हुस्न पास तेरे
अज़ाँ दे के नाक़ूस को फूँक कर
सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
फ़ुग़ान-ओ-आह से पैदा किया दर्द-ए-जुदाई को
पीरी हुई शबाब से उतरा झटक गया