नहीं है मुझ को ऐ जमशेद तेरे जाम से काम

नहीं है मुझ को ऐ जमशेद तेरे जाम से काम

जहाँ-नुमा है मुझे अपने ख़ुश-ख़िराम से काम

सभी तो दीन व दुनिया का काम करते हैं

मुझे न दीन न दुनिया के इंतिज़ाम से काम

हरम में शैख़ हैं और दैर में बरहमन हैं

हमें नहीं है उन्हों के कोई कलाम से काम

कुनिश्त-ए-दिल में है इक जोश बुत-परस्ती का

मुझे बुतों की है ख़िदमत में राम राम से काम

ग़रज़ न कुफ़्र से कुछ है न दीन से मतलब

न है हलाल से ना है हमें हराम से काम

सनम के रू-ब-रू रहना मुझे ग़नीमत है

न शर्म नंग से कुछ है मुझे न नाम से काम

ख़फ़ा भी हो के जो देखे तो सर निसार करूँ

अगर न देखे तो फिर भी है इक सलाम से काम

सुना सुना के जो करता है वाज़-ए-हुस्न बयाँ

पड़ा है तुझ को हमेशा ये फ़हम-ए-ख़ाम से काम

तू अपने बकने से 'मिस्कीं' न हम से दूर हुआ

तुझे तो बकने से मुझ को है अपने काम से काम

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