तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
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थी मिरी हम-सफ़री एक दुआ उस के लिए
जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार
चार-सू सैल-ए-सिपाह-ए-मह-ओ-अख़्तर तेरा
बोझ सा बढ़ जाता है दिल पर शाम-ढले
मेरे लहू की सरशारी क्या उस की फ़ज़ा भी कितनी देर
अभी रंग-ए-रब्त अयाँ है क़ौस-ए-ख़याल से
दिए मुंडेरों के रौशन क़तार होने लगे
उट्ठे ग़ुबार-ए-शोर-ए-नफ़स तो वहशत मत करना
उस पार बनती मिटती धनक उस के नाम की
न साथ आ मिरे मैं गिरते फ़ासलों में हूँ
ख़ूब है इश्वा ये उस का ये इशारत उस की
क्या अब मिरी कहानी में