वो यक़ीनन वली सिफ़त होगा
ख़ैर से जो भी शर में रहता है
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कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़
सब के होंटों पे वारदात के बअ'द
अब हक़ीक़त लग रहा है मेरा अफ़्साना मुझे
ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया
जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है
मरते दम तक सब मुझ को इंसान कहें
मज़ाक़-ए-ग़म उड़ाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
तिरी सूरत मुझे बताती है