मरते दम तक सब मुझ को इंसान कहें
ऐसा ही किरदार मिरा हो या-अल्लाह
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मज़ाक़-ए-ग़म उड़ाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
वो यक़ीनन वली सिफ़त होगा
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया
तू अगर बा-उसूल हो जाए
जतन करता तो हूँ लेकिन ये बीमारी नहीं जाती
ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए
अब हक़ीक़त लग रहा है मेरा अफ़्साना मुझे
राह-ए-हक़ में तुझे हस्ती को मिटाना होगा
ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल