दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं
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मज़ाक़-ए-ग़म उड़ाना अब मुझे अच्छा नहीं लगता
होश खो कर जोश में कुछ इस तरह मैं बह गया
जुस्तुजू तेरी तरह ग़म तिरी क़ुर्बत क्या है
तू अगर बा-उसूल हो जाए
वो यक़ीनन वली सिफ़त होगा
ग़ुर्बत का अब मज़ाक़ उड़ाने लगे हैं लोग
कोई करता है जब हिन्दोस्तान की बात ए 'साहिल'
मेरी नींदें हराम क्या होंगी
सब के होंटों पे वारदात के बअ'द
हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार
मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़