किस जफ़ा-कार से हम अहद-ए-वफ़ा कर बैठे
आख़िर इस बात ने इक रोज़ पशेमान किया
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(573) Peoples Rate This
देखे कहीं रस्ते में खड़ा मुझ को तो ज़िद से
देखे कहीं मुझ को तो लब-ए-बाम से हट जाए
जूँ जूँ नहीं देखे है 'निसार' अपने सनम को
बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए
कुछ मुझे अब ज़िंदगी अपनी नज़र आती नहीं
ये जो हम से दो चार बैठे हैं
मेरे परवाने को अब मुज़्दा-ए-मायूसी है
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
चोरी चोरी आँख लड़ते में दिखा दूँ तो सही
अश्क हुए हैं अबतर ऐसे हम को बहाए देते हैं
हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के