ये जो हम से दो चार बैठे हैं
फ़ित्ना-ए-रोज़गार बैठे हैं
तिश्ना-ए-ख़ूँ यही हमारे हैं
ये जो बाँध कटार बैठे हैं
तेरे कूचे में जैसे नक़्श-ए-क़दम
कब से हम ख़ाकसार बैठे हैं
ग़ैर के सर पे तेग़ मत खींचो
हम तुम्हारे 'निसार' बैठे हैं
Anwar Masood
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कटती है कोई दम यहीं औक़ात मज़े की
देखे कहीं रस्ते में खड़ा मुझ को तो ज़िद से
कुछ मुझे अब ज़िंदगी अपनी नज़र आती नहीं
मुझ में और उन में सबब क्या जो लड़ाई होगी
है जो सीना में जगह लहके है अँगारा सा
दोस्ती चाह दिली मेहर-ओ-मोहब्बत गुज़री
जूँ जूँ नहीं देखे है 'निसार' अपने सनम को
करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए