मुझ में और उन में सबब क्या जो लड़ाई होगी
ये हवाई किसी दुश्मन ने उड़ाई होगी
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मेरे परवाने को अब मुज़्दा-ए-मायूसी है
मत मुँह से 'निसार' अपने को ऐ जान बुरा कह
ये जो हम से दो चार बैठे हैं
सौ तरह का छोड़ कर आराम तेरे वास्ते
करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
चोरी चोरी आँख लड़ते में दिखा दूँ तो सही
कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
अश्क हुए हैं अबतर ऐसे हम को बहाए देते हैं
देखे कहीं मुझ को तो लब-ए-बाम से हट जाए
दोस्ती चाह दिली मेहर-ओ-मोहब्बत गुज़री